३ बार बेल बजने के बाद किसी ने दरवाज़ा खोला, आज भी २:३० बज गए थे। इन्हे ना ही इंतज़ार करने के आदत है और ना ही मेरे इंतज़ार ना करने की। गुस्सा आना तो वाजिब था। मैं नहीं जानती इनके मन में सवाल थे या नहीं आज पर मेरे सारे जवाब तो मैं जान चुकी थी अब।
पहली बार जब यह लोग मुझे देखने आये थे तो इनकी माँ ने मेरे हाथ की बनी कचोड़ियाँ बहुत पसंद आई थी और इन्होने बस मेरी तरफ देखकर मुस्कुरा दिया था। वह पहली मुस्कुराहट थी जो मेरे लिए और मेरी वजह से थी, इसके जाते ही मुझे भी चले जाना चाहये था। इंतज़ार करना मेरी सबसे बड़ी भूल थी। एक डब्बा भर के कचोड़ियाँ बना के रख दी है मेने आज दोपहर को।
ज़ोर से दरवाज़ा बंद हुआ, में हमारे कमरे में बिस्तर की बाहिनी ओर दुबक के लेटी हुई थी। वह बाथरूम की और गए मेने अपनी आँखें बंद ही रखी। शायद उन्हें भी यही लग रहा था की मैं सो चुकी हूँ। उनके कदम बिस्तर की दाहिनी और जाने के बजाये मेरी ओर बढ़ने लगे, एक बार फिर मेरा शरीर उनके अहंकार के लिए त्यार हो गया। आज पांच साल बाद यह डर भी आदत में बदल चुका है। और आज तो मेने ५ साल के सबसे बड़े डर से भी ना डरने का मन बना लिया है। पर आज कुछ अलग है , आज मैं बिस्तर की इस बाहिनी ओर फिर कभी ना आने का मन बना के आई हूँ। ये मेरी तरफ झुके और साथ वाले टेबल से मेरी डायरी उठाकर बिस्तर की बाहिनी और आकर लेट गये।जो मेरे आज भेजे हुए मैसेज में नहीं मिला शायद वो मेरी डायरी में ढूंढने की कोशिश कर रहे थे। ३ मिनट के सन्नाटे के बाद मेने इनकी ओर मुड कर कहा, "खाना लगा दू?"
पहली बार जब यह लोग मुझे देखने आये थे तो इनकी माँ ने मेरे हाथ की बनी कचोड़ियाँ बहुत पसंद आई थी और इन्होने बस मेरी तरफ देखकर मुस्कुरा दिया था। वह पहली मुस्कुराहट थी जो मेरे लिए और मेरी वजह से थी, इसके जाते ही मुझे भी चले जाना चाहये था। इंतज़ार करना मेरी सबसे बड़ी भूल थी। एक डब्बा भर के कचोड़ियाँ बना के रख दी है मेने आज दोपहर को।
ज़ोर से दरवाज़ा बंद हुआ, में हमारे कमरे में बिस्तर की बाहिनी ओर दुबक के लेटी हुई थी। वह बाथरूम की और गए मेने अपनी आँखें बंद ही रखी। शायद उन्हें भी यही लग रहा था की मैं सो चुकी हूँ। उनके कदम बिस्तर की दाहिनी और जाने के बजाये मेरी ओर बढ़ने लगे, एक बार फिर मेरा शरीर उनके अहंकार के लिए त्यार हो गया। आज पांच साल बाद यह डर भी आदत में बदल चुका है। और आज तो मेने ५ साल के सबसे बड़े डर से भी ना डरने का मन बना लिया है। पर आज कुछ अलग है , आज मैं बिस्तर की इस बाहिनी ओर फिर कभी ना आने का मन बना के आई हूँ। ये मेरी तरफ झुके और साथ वाले टेबल से मेरी डायरी उठाकर बिस्तर की बाहिनी और आकर लेट गये।जो मेरे आज भेजे हुए मैसेज में नहीं मिला शायद वो मेरी डायरी में ढूंढने की कोशिश कर रहे थे। ३ मिनट के सन्नाटे के बाद मेने इनकी ओर मुड कर कहा, "खाना लगा दू?"
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