NA TUM SAMAJH PAYE, NA HUM
घर में घुसना अब एक कोर्ट जैसा लगता है, और तुम्हारी आँखें जैसे एक आहिना जो मुझसे मेरी असफलता के किस्से सुनने के लिए बेताब रहती हैं । क्या मेरा tie loose करना काफी नहीं है तुम्हारे समझने के लिए की आज भी मैं रिजेक्ट हो गया ?
मज़ाक सा लगता है, पहले माँ पापा और अब तुम, सबसे पॉकेट मनी ही लेता रह गया मैं तो।
जब कभी अपनी पसंद के परदे खरीदने या दूसरे कमरे में A .C. लगवाने से पहले तुम्हे सोचना पड़ता है तब मेरा ३ साल पहले किया हुआ एक-एक वादा धुंदलाता हुआ दिखता है। असल ज़िन्दगी बॉलीवुड नहीं होती ना।
28 वी कम्पनी से रिजेक्ट होने के लिए तुम मेरी शर्ट प्रेस कर रही हो। चुप चाप।
शुरुआत में मेरी ईगो हर्ट हो जाती थी पर अब तो तुम्हारे सामने सिगरेट पीने से भी नहीं झिझकता में।
तुम्हारी कंपनी में काम करके तुम्हारे 55000 का राज़ जो तुम्हारे बॉस के केबिन में छिपा है पहचान लिया था मैने। जब मैने कुछ नहीं कहा तो अब तुम भी क्या ही कहोगी मुझसे ?
हर शनिवार, वही नुकड़ वाली कुल्फी खाने के बाद पर्स खोलके पैंसे देकर मुझे नीचा दिखतो हो। अभी भी कहे बिना मेरी शर्ट प्रेस करके तुम क्या जाताना चाहती हो ?
में तुम्हारी गलतियों का तमाशा नहीं बनाता , पर तुम तो बंद कमरे में भी अपनी वही कॉलेज वाली स्माइल देकर, मुझे मेरे असफल होने का नज़ारा अपनी आँखों में हर रात दिखाती हो।
क्या बात हैं!
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ReplyDelete१००/१००
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